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लेखनी कहानी -11-Sep-2022 सौतेला

भाग  11 : सागर किनारे 



संपत और गायत्री के प्यार से गायत्री के गर्भ में एक नई जिंदगी पल रही थी । यद्यपि संपत बहुत ध्यान रखता था गायत्री का मगर पुलिस की नौकरी होती ही ऐसी है कि इसमें दिन देखा जाता है ना रात । कोई छुट्टी होती नहीं है । लोग अक्सर पुलिस वालों को बुरा भला कहते हैं, उन्हें गाली देते हैं । उन्हें निकम्मा, भ्रष्ट, संवेदनहीन और न जाने क्या क्या कह देते हैं मगर हकीकत यह है कि लोगों का बिना पुलिस के काम भी नहीं चलता है । छोटी से छोटी बात के लिए भी पुलिस का सहारा लेना ही पड़ता है । ऐसे में पुलिस वाले अपने परिवार की उपेक्षा सबसे अधिक करते हैं । उन्हें समय दे ही नहीं पाते हैं । गायत्री भी यह बात जानती थी । और फिर संपत तो बहुत कर्तव्यनिष्ठ, संवेदनशील और ईमानदार अधिकारी था इसलिए वह अपने काम में अक्सर व्यस्त रहता था । समय गुजारने के लिए गायत्री टेलीविजन देखने लग गई । 
एक दिन संपत थोड़ा देर से आया तो उसने देखा कि गायत्री "खूनी दरिन्दा" नामक धारावाहिक देख रही थी । उस दिन संपत को गायत्री पर बहुत क्रोध आया मगर वह उसे प्यार से समझाते हुए बोला "तुम्हें पता है गायत्री कि तुम्हारे अंदर एक 'जीव' पल रहा है । फिर भी तुम ऐसे डरावने किस्म के धारावाहिक देख रही हो" ? 

गायत्री को अपनी गलती का तुरंत अहसास हो गया । इंसान वही अच्छा होता है जो अपनी गलतियों को स्वीकार करे और उन्हें भविष्य में नहीं दोहराये । गायत्री ने कहा "घर में अकेले बैठे बैठे बोर हो रही थी । सास बहू के धारावाहिक देखते देखते ऊब गई थी इसलिए कुछ नया और रोमांचक देखने के लिए यह धारावाहिक देखने बैठ गई" ।
"वो तो ठीक है मगर ऐसी हालत में तुम्हें इस प्रकार के धारावाहिक नहीं देखने चाहिए, गायत्री । ऐसे समय तो भगवान राम, कृष्ण, हनुमान , गणेश जी की बाल लीलाएं देखनी चाहिए । इस समय तुम जो भी देखोगी, सोचोगी , चिंतन करोगी, सुनोगी उस सबका असर होने वाले बच्चे पर होगा । तुम्हें पता है जब सुभद्रा के गर्भ में अभिमन्यु था तब अर्जुन ने चक्रव्यूह की रचना के बारे में सुभद्रा को बताया था । वही ज्ञान अभिमन्यु को महाभारत के समय काम आया था । इसलिए तुम्हें बहुत सोच समझकर टेलीविजन देखना चाहिए और साहित्य भी देखभाल कर ही पढना चाहिए" । संपत उसे बड़े प्रेम से समझाते हुए बोला । 
"जी, आप सही कहते हैं । मुझसे भूल हो गई थी । अब आगे से नहीं देखूंगी इस तरह के धारावाहिक । पर एक बात और है । घर में पढने को अच्छी पुस्तकें नहीं हैं ना । अगर आप ला दें तो मैं उन्हें पढकर अपना टाइम पास कर लूं "। 

संपत को अब अपनी गलती का अहसास हुआ । जब उसने ढंग की कोई किताब लाकर ही नहीं दी तो वह ऊलजलूल ही पढेगी और देखेगी । वह तुरंत बाजार गया और रामचरितमानस, बाल गणेश, बाल हनुमान,  श्रीमदभागवत और बहुत सी धार्मिक पुस्तकें ले आया । उन्हें गायत्री को संभलाकर बोला "इन्हें पढा करो । ये मानसिक शांति, दृढता और ज्ञान देंगी जिससे तुम न केवल प्रसन्न रहोगी अपितु तुम्हारे मन में वात्सल्य भाव और प्रगाढ होगा" । 

थोड़ी देर खामोश रहने के बाद गायत्री बोली "आप सही कहते हैं । इन पुस्तकों को पढने से मन और मस्तिष्क दोनों ही शुद्ध और सात्विक बनते हैं । पर मेरी एक इच्छा है क्या आप वह पूरी करेंगे" ? 

संपत को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि गायत्री की कोई इच्छा भी है । और उससे बड़ा आश्चर्य इस बात का है कि उसे उसकी इच्छा का जरा सा भी आभास नहीं है । इससे बड़ी नाइंसाफी और क्या होगी उसके साथ ? उसने कहा "मुझे माफ करना गायत्री, मैं तुम्हारी इच्छा जान नहीं पाया । कहो क्या इच्छा है" ? 

गायत्री ने संपत के कंधे से अपना सिर लगाते हुए कहा "बस इतनी सी ही इच्छा है कि आप ही पढकर सुना दिया करो ना ये किताबें । आपके मुंह से सुनना अच्छा लगता है । आप जब बोलते हो तो ऐसा लगता है जैसे झरना बह रहा है । आपकी वाणी में सागर की तरह गंभीरता है । आपके विचारों में आसमान की तरह गहनता है । आप समझाते भी बहुत अच्छी तरह हैं । पता नहीं आप थानेदार कैसे बन गए? आपको तो किसी कॉलेज में प्रोफेसर होना चाहिए था" । वह मुस्कुराते हुए बोली ।

संपत को महसूस हुआ कि गायत्री अकेलापन महसूस कर रही है । बात सही भी थी । वह अपने काम में इतना मशगूल था कि वह गायत्री का ध्यान रख ही नहीं पाया । उसने अब गायत्री के साथ रहने का प्लान बनाया । उसने एक महीने की छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया । उसके काम और उसकी मौजूदा स्थिति को देखकर उसकी छुट्टी मंजूर भी हो गई । संपत की खुशियों का कोई ओर छोर नहीं रहा । दोनों केरल के 'बीच' का आनंद लेने के लिए एलेप्पी आ गये । यहां पर संपत ने एक ऐसे रिजॉर्ट में कमरा बुक करवाया जिसके सामने विशाल अरब सागर था । 

संपत और गायत्री रोज सुबह और शाम घंटों सागर किनारे बैठे रहते । प्रेमालाप करते । अपने बच्चे के लिए योजनाएं बनाते । संपत कभी रामचरित मानस की चौपाइयां सुनाता तो कभी श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं पढकर सुनाता । कभी बाल गणेश तो कभी बाल हनुमान जी की शैतानियों के बारे में बताता था । गायत्री के चेहरे की रौनक लौट आई थी । गर्भावस्था के समय 24 घंटे यदि पति का साथ मिले, धार्मिक पुस्तकों का मार्गदर्शन मिले और सुबह शाम सागर का किनारा मिले तो फिर चेहरे पर लाली तो आएगी ही न । 

गायत्री बीच पर रोज एक नया घरोंदा बनाती और रोज उस घरोंदे को सागर की लहरें अपने साथ बहा ले जाती । संपत इस घटना को रोज देखता था पर गायत्री कभी रुकी नहीं, कभी थकी नहीं । एक दिन संपत ने पूछ ही लिया "गायत्री, तुम रोज एक सुंदर सा घर यहां बनाती हो और उस घर को सागर की लहरें रोज ही धराशाई कर देती हैं । इससे तुम्हें बुरा नहीं लगता है क्या" ? 
"इसमें बुरा लगने की क्या बात है ? मुझे घर बनाना अच्छा लगता है । इंसान का कर्तव्य है परिश्रम करना । इसलिए मैं रोज परिश्रम करके एक घरोंदा बनाती हूं । नारी का तो काम ही सृजन करना है और जो बना हुआ है उसे सजाना, संवारना है । मैं वही करती हूं । परिश्रम का फल ईश्वर के हाथ है । उस पर मेरा कोई वश नहीं है । लहरों का भी अपना एक काम है । लहरें अपने साथ सब कुछ बहाकर ले जाती हैं । यही उनका धर्म है । मैं अपना काम करती हूं और लहरें अपना । फिर इसमें परेशान होने की क्या बात है" ? 

गायत्री के इस गूढ ज्ञान की कल्पना संपत ने नहीं की थी । वह गायत्री को अवाक होकर देखता रहा । गायत्री दूर तक फैले सागर को देख रही थी । वह सागर के हृदय में उठने और गिरने वाली लहरों की चंचलता और नश्वरता को भी देख रही थी । अचानक उसने संपत से पूछा "हमें सागर के किनारे बैठना क्यों अच्छा लगता है" ? 

संपत भी बहुत देर तक सागर को निहारता रहा । सागर से आने वाले शोर को सुनता रहा । लहरों पर खेलने वाली सूर्य किरणों की अठखेलियों के साथ मुस्कुराता रहा, फिर बोला "जिस तरह हमें हमारे बड़े बुजुर्गों के पास बैठकर एक संबल मिलता है, ज्ञान मिलता है, मार्गदर्शन मिलता है, वात्सल्य मिलता है उसी तरह सागर किनारे बैठकर अद्भुत शांति मिलती है । सागर अपने कलेजे में कितनी हलचल समेटे हुए रहता है मगर उसका अहसास होने तक नहीं देता है । कितने ही तूफान आते रहते हैं मगर वह अपनी हदों में रहना जानता है । उसकी गोद में न जाने कितने खनिज पदार्थ,  हीरे मोती माणिक्य भरे पड़े हैं मगर वह कभी अहंकार में चूर नहीं होता है । इतनी खूबियों वाले समंदर के पास बैठकर अच्छा क्यों नहीं लगेगा" ?

गायत्री संपत की ओर देखकर बोली "कितनी सहजता के साथ हर बात समझा देते हैं आप ? सच में आप कमाल हैं" और गायत्री ने संपत के कंधे पर सिर टिका दिया । 

श्री हरि
22.9.22 

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4 Comments

Barsha🖤👑

24-Sep-2022 10:00 PM

Nice post

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Mithi . S

24-Sep-2022 05:54 AM

Bahut khub

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Sushi saxena

23-Sep-2022 10:33 AM

Bahut khub 👌

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